🙏🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🙏 


मित्रों आज श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से दो श्लोक प्रस्तुत हैं। दो एक साथ इसलिए क्योंकि दोनों ही एक दूसरे से जुड़े हुए हैं .......


बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।

सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥ 


अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।

भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥

(अध्याय 10, श्लोक 4 व 5)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ) - संशय को मिटाने वाली बुद्धि, मोह से मुक्ति दिलाने वाला ज्ञान, क्षमा का भाव, सत्य का आचरण, इंद्रियों का नियन्त्रण, मन की स्थिरता, सुख-दुःख की अनुभूति, जन्म-मृत्यु का कारण, भय-अभय की चिन्ता, अहिंसा का भाव, समानता का भाव, संतुष्ट होने का स्वभाव, तपस्या की शक्ति, दानशीलता का भाव और यश-अपयश की प्राप्ति में जो भी कारण होते हैं यह सभी मनुष्यों के अनेकों प्रकार के भाव मुझसे ही उत्पन्न होते हैं। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

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