एक दिन मैं बैठा सोच रहा था कि  नवरात्रे वसंत ऋतु में और शरद ऋतु या ऋतु परिवर्तन पर क्यो आते हैं ? क्या इनके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार है और क्या जो आजकल टीवी पर नवरात्रों पर कई डिबेट होती हैं क्या वेदों में भी कहीं उन बातों का आधार मिलता है या नहीं? बस इन्ही कुछ बातों को मैंने ढूंढना शुरू किया और जो मुझे मिला आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । मुझे आशा है कि आप सभी को ये जानकारी पढ़ कर अच्छा लगेगा और आपके ज्ञान में वृद्धि होगी । आइए जानें नवरात्रों का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार क्या है।

नवरात्रे ऋतु परिवर्तन पर आते हैं यानी जब सर्दी से गर्मी में या गर्मी से सर्दी में हम प्रवेश करते हैं। अगर हम ध्यान दें कि जब भी मौसम बदलता है तो हमारे शरीर में मौसम परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है हमारे कपड़ों और खानपान में भी परिवर्तन आता है। इस समय मौसमी बीमारियां  भी बहुत फैलती हैं । इस परिवर्तन को हमारा शरीर आसानी से ग्रहण कर ले और  हमारे शरीर पर कुछ बुरा प्रभाव न पड़े। 

हमारे ऋषि मुनियों ने मानव जाति को ऋतु परिवर्तन के खतरों से बचने के लिए और शरीर में  रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने के लिए शक्ति की उपासना का विधान दिया और कुछ नियम भी दिए जिसमें एक खानपान और दूसरा आचार - विचार का सयंम। नवरात्रों में माँ के 9 रूपों के पूजन का विधान है। शारद नवरात्रों में शक्ति की उपासना की जाती हैं इस बार नवरात्रे 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक हैं ।

ज्योतिष आचार्य सुमन्त शर्मा 


पूजा का समय और पूजा की विधि : 

शक्ति रूपिणी भगवती दुर्गा माँ की उपासना का समय सुबह 6 बजे से 9 बजे तक, उसके बाद राहु काल 9 बजे से 10:30 तक रहेगा। जो समय पूजा के लिए  निषेध है अतः सुबह 6 से 9 बजे ओर 10:30 से 12:15 तक घट स्थापित किया जा सकता है।

पूजा का सामान :

जौ, मिट्टी, रेत, मिट्टी की कसोरा,नारियल, लोटा, लाल कपड़ा,रोली, मोली, चावल, लोंग, इलाइची, इत्र, फल, प्रसाद, पान,सुपारी।

पूजा से पहले प्रार्थना करनी चाहिए -  माता मैं सर्वश्रेष्ठ नवरात्र व्रत करूँगा। हे देवी ! हे जगदम्बे ! आप मेरी सम्पूर्ण सहायता करें !

इस व्रत के लिए यथाशक्ति नियम रखें। उसके बाद मन्त्रोच्चारण वैदिक स्वस्तिवाचन कराएं और विधिवत भगवती जगदम्बा का पूजन और आरती करें।

किस उम्र की कन्या का पूजन शास्त्र में वर्जित है :

पूजा विधि में एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इस अवस्था की  कन्याएं गंध और भोग आदि प्रदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनभिज्ञ होती हैं । दो वर्ष की जो कन्या हो चुकी हो उस कन्या को शास्त्र में कुमारी कन्या कहा गया है और तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा गया है, चार वर्ष की कन्या को कल्याणी, पाँच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, 9 वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। इसके ऊपर की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए। आगे जानेंगे  की इन कन्याओं के पूजन का क्या फल प्राप्त होता है ।

ज्योतिष आचार्य सुमन्त शर्मा, नई दिल्ली

9811339744, 9354915859, 9654545413

Share To:

Post A Comment: