प्रदोष व्रत आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 14 अक्टूबर, बुधवार 11:51 मिनट से शुरू होगा एवं 15 अक्टूबर को 08:33 मिनट पर समाप्त होगा।

प्रदोष व्रत का पौराणिक शास्त्रों में अत्याधिक महत्त्व है। पुराणों के आधार पर ऐसा माना जाता कि प्रदोष काल में भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए। प्रदोष काल उपवास रखने से और नियमपूर्वक पालन करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को गरीबी, दरिद्रता, कर्ज आदि से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि

–  प्रातःकाल उठकर स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करें।

–  इसके बाद पूजा स्थल की सफाई करें और गंगाजल छिड़कें।

–  पूजा करने के लिए सफेद रंग के आसान पर बैठें।

–  पूजा स्थल पर एक चौकी स्थापित करें और उसमें सफेद कपड़ा बिछाएं, कपड़े पर स्वास्तिक बनाएं और उसकी पूजा करें।

–  चौकी पर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें. और सफेद फूलों की माला पहनाएं।

–  सरसों के तेल का दीया जलाएं और भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

–  इस दिन भोलेनाथ की पूजा करते हुए उन्हें खीर का भोग लगाएं और इस प्रसाद को घर के सभी सदस्यों को बांटें। इस पूजा विधि में गंगाजल का अधिक महत्त्व है।

प्रदोष व्रत-पूजन सामग्री की सूची:

1. सफेद पुष्प

2. हवन सामग्री एवं आम की लकड़ी

3. सफेद वस्त्र

4. आंकड़े का फूल

5. सफेद मिठाइयां

6. शुद्ध घी (गाय का हो तो अति उत्तम)।

7. आरती के लिए थाली

8. जल से भरा हुआ कलश

9. बेलपत्र

10. धतूरा

11. सफेद चंदन

12. सफेद फूलों की माला

13. कपूर

14. धूप

15. दीप

16. भांग

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