🙏🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🙏
मित्रों आज का यह श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के नौवें अध्याय 'राजविद्याराजगुह्ययोग' से ही मैंने लिया है ।
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
(अध्याय 9, श्लोक 30)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ) - यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात् उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
शुभ रविवार !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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