🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज का श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के नौवें अध्याय 'राजविद्याराजगुह्ययोग' से ही है । 


तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।

अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥

(अध्याय 9, श्लोक 19)


इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ) -  मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ।


आपका दिन शुभ हो  !   


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

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