🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज का श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के नौवें अध्याय 'राजविद्याराजगुह्ययोग' से ही है । 


गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।

प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥

(अध्याय 9, श्लोक 18)


इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ) - प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम 'निधान' है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ। 


आपका दिन शुभ हो  !   


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद

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