🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏
मित्रो कल से मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के नौवें अध्याय 'राजविद्याराजगुह्ययोग' का आरंभ किया है, आज का श्लोक भी इसी अध्याय से ही है ।
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥
(अध्याय 9, श्लोक 6)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं )-जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान् वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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