इंग्लिश केलेंडर में अधिक मास का कोई जिक्र नहीं है इस प्रकार के कई प्रश्न हम सभी के मन में आते हैं और कई बार तो यह भी सुनने को मिलता है कि ये तो पंडितों का बनाया हुआ है।
नई पीढ़ी को यह समझाना हमें मुश्किल हो जाता है। तो चलिए सब से पहले पुराणिक आधार देखें कि अधिक मास क्या है और क्यों बनाया गया -
प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशपु ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि ना मैं दिन में मरूं न रात को मरूं, न घर में मरूं न घर के बाहर मरूं, न बारह महीनों में मरूं, न पशु से मरूं न मानव से मरूं, न कोई देवता मुझे मार सके।
अधिकमास का निर्माण हिरण्यकशपु के वध के लिए किया गया ऐसा पता हमारे वेदों के माध्यम से हमें मिलता है।
अब वैज्ञानिक तथ्य पर भी थोड़ी दृष्टि डालते हैं - भगवान सूर्य ज्योतिष शास्त्र के अधिस्तदेवता हैं। सूर्य मेषादि 12 राशियों में सुचारू रूप से संचार करते हैं तब संवत्सर बनता है जिसको सौर वर्ष कहते हैं।
सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है उस दिन को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष और वैज्ञानिक गणना के अनुसार एक सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे 11 सैकिण्ड का होता है।
आचार्य सुमंत शर्मा |
आम भाषा में एक वर्ष 365 दिन का कहा जाता है और हर 4 साल बाद एक दिन फरवरी में जोड़ दिया जाता है ताकि सूर्य की गति को सही रखा जा सके। इसी प्रकार एक चंद्रवर्ष भी चलता है जिसमें 354 दिन एवं 9 घण्टे होते हैं और एक मास में दो पक्ष होते हैं, एक कृष्ण पक्ष और एक शुक्ल पक्ष । कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष लगभग 15 - 15 दिन के होते हैं और यदि सही हिसाब लगाएं तो 29.5 दिनों का एक मास होता है।
इसी चंद्रवर्ष से ही अधिक मास का निर्माण होता है। सूर्य और चंद्रमा की गति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर 3 वर्ष में एक अधिक मास का निर्माण किया जाता है इस मास की निशानी इस प्रकार की होती है कि जिस मास में दो अमावस्या आएं लेकिन सूर्य संक्रांति नहीं आए, उस मास को अधिक मास , मलमास, पुरुषोत्तम मास कहते हैं।
सूर्यवर्ष और चंद्रवर्ष के बीच में लगभग 11 दिनों का फर्क आता है। दोनों के बीच मे सामंजस्य स्थापित करने के लिए इस मास का निर्माण होता है।
इस मास को किसी देवता ने अपना नाम प्रदान नहीं किया। इस पर अधिक मास ने तपस्या की तब भगवान विष्णु ने अपना नाम प्रदान किया और पुरषोतम मास कहा जाने लगा।
इस मास में शुभ कार्य वर्जित किया गया है, ऐसा क्यों है आप ध्यान दें कि इस मास की उत्पत्ति का उद्देशय किसी की मृत्यु के लिए किया गया है और दूसरा उदेशय भक्ति और भगत की रक्षा का था।
जिस मास में संक्रन्ति नहीं हो तो उस मास में शुभ कार्य वर्जित होते हैं क्योंकि सभी शुभ कार्यों का कोई न कोई देवता होता है सिर्फ़ ब्रह्मा, विष्णु और महादेव किसी कार्य की आज्ञा नहीं दे सकते क्योंकि हर कार्य किसी न किसी देवता के अधीन है और इस मास को किसी देवता का स्वामित्व प्राप्त नहीं है।
क्योंकि इसको भगवान विष्णु ने अपना नाम प्रदान किया इसलिए इस मास में भक्ति,ध्यान और दान का अधिक फल प्राप्त होता है यानी 1000 गुना फल प्राप्त होता है। इसलिए इस मास में किसी देवता का न होना इस मास में शुभ कार्यों को वर्जित कहता है।
(प्रस्तुति : आचार्य सुमंत शर्मा)
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