🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम मित्रों !
मित्रों आज का श्लोक भी मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयम योग' से ही लिया है।
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः॥
(अध्याय 6, श्लोक 36)
इस श्लोक का अर्थ है : भगवान श्री कृष्णा कहते हैं) -जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा उसका प्राप्त होना सहज है- यह मेरा मत है।
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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