🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏

मित्रों आज का श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय  'अक्षर ब्रह्म योग' से ही है ....

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥
(अध्याय 8, श्लोक 8)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं ) -  हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है। 

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत माथुर  
ग़ाज़ियाबाद
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