🙏🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🙏
आज से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के आठवें अध्याय 'अक्षर ब्रह्म योग' का आरंभ कर रहा हूँ। आज का श्लोक भी इसी अध्याय से ही है ..
श्रीभगवानुवाच -
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥
(अध्याय 8, श्लोक 3)
इस श्लोक का अर्थ है : श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है।
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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