Shares
FacebookXSMSWhatsAppPinterestEmailSumoMe


🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम मित्रों !

मित्रों आज का श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय 'ज्ञान विज्ञान योग' से ही है ....

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥
(अध्याय 7, श्लोक 17)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्णा कहते हैं) - उनमें (चार प्रकार के भक्तजन) से नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है।

आपका दिन मंगलमय हो !

पुनीत माथुर  
ग़ाज़ियाबाद
Share To:

Post A Comment: