आप सभी को प्रणाम मित्रों !
आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आज इस शृंखला को 100 दिन पूरे हो रहे हैं। मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ कि आप सभी ने इस शृंखला को इतना पसंद किया कि मैं इसको यहां तक ले आया।
आज का श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय 'ज्ञान विज्ञान योग' से ही है ....
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥
(अध्याय 7, श्लोक 15)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्णा कहते हैं) - माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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