🙏राधे राधे 🙏

प्रणाम मित्रों !

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धु-रात्मैव रिपुरात्मनः॥
(अध्याय 6, श्लोक 5)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) अपने (विवेक युक्त मन) द्वारा अपना (इस भव-सागर से) उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले क्योंकि यह मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है।

आपका दिन मंगलमय हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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