🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम मित्रों !

मित्रों आज का श्लोक भी मैंने  श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयम  योग' से ही लिया है।

श्रीभगवानुवाच -
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥
(अध्याय 6, श्लोक 35)

इस श्लोक का अर्थ है : श्री भगवान कहते हैं - हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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