🙏राधे राधे 🙏
प्रणाम मित्रों !
मित्रों आज से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयम योग' से चुनिंदा श्लोक आपके सम्मुख रखना आरंभ कर रहा हूँ ।
श्रीभगवानुवाच -
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥
(अध्याय 6, श्लोक 1)
इस श्लोक का अर्थ है : श्री भगवान कहते हैं - जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी और योगी है न कि अग्नि या क्रियाओं का त्याग करने वाला।
आपका दिन मंगलमय हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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