🙏राधे राधे 🙏

प्रणाम मित्रों !

आज का श्लोक भी मैंने लिया है  श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः॥
(अध्याय 5, श्लोक 25)

इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) जो निष्पाप ऋषि, जिनके सब संशय (ज्ञान द्वारा) निवृत्त हो गए हैं, जो सभी प्राणियों के हित में रत हैं और जो अपनी आत्मा में स्थित हैं, वे शांत ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। 

आपका दिन मंगलमय हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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