🙏राधे राधे 🙏

प्रणाम मित्रों !

आज का श्लोक भी मैंने लिया है  श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस् तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति॥
(अध्याय 5, श्लोक 24)

इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) जो योगी अन्तरात्मा में ही सुख वाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है और जो आत्मा में ही प्रकाश (ज्ञान) वाला है, वह ब्रह्म होकर शांत पर ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है। 

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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