🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम !

आज का श्लोक भी मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥
(अध्याय 5, श्लोक 12)

इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) कर्मयोगी कर्मों के फल का त्याग करके सदा रहने वाली शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना करने के कारण उस कर्म के फल में आसक्त होकर बँधता है। 

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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