🙏राधे राधे 🙏

प्रणाम मित्रों !

आज से मैं श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग'  से श्लोक व उनके अर्थ लिखना आरंभ कर रहा हूँ ।  

श्रीभगवानुवाच -
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात् कर्मयोगो विशिष्यते॥
(अध्याय 5, श्लोक 2)

इस श्लोक का अर्थ है : श्री कृष्ण भगवान कहते हैं- कर्म संन्यास और कर्मयोग- ये दोनों ही परम कल्याण के कराने वाले हैं, पर इन दोनों में भी कर्मयोग कर्म-संन्यास से (करने में सुगम होने के कारण) श्रेष्ठ है।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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