प्रणाम मित्रों !
आज का श्लोक भी मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय से।
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥
(अध्याय 4, श्लोक 40)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) विवेकहीन, श्रद्धारहित और संशययुक्त मनुष्य (परमार्थ से) भ्रष्ट हो जाता है। उस के लिए न यह लोक सुखप्रद है और न परलोक ही।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
Post A Comment: