🙏राधे राधे 🙏

प्रणाम मित्रों !

आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं !

आज का श्लोक भी मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय से। 

दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति॥
(अध्याय 4, श्लोक 25)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) दूसरे मनुष्य देव-उपासना रूपी यज्ञ को  ही भली-भाँति करते हैं और अन्य ब्रह्म रूपी अग्नि में (अभेद दर्शन द्वारा आत्म रूपी) यज्ञ का हवन करते हैं। 

आप का दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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