🙏राधे राधे 🙏 

आप सभी को प्रणाम ! 

आज का श्लोक भी मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय से। 


ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।

ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥
(अध्याय 4, श्लोक 24)


इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) जिस यज्ञ में अर्पित पदार्थ भी ब्रह्म है और हवन किए जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्म रूपी कर्ता द्वारा ब्रह्म रूपी अग्नि में आहुति रूपी  क्रिया भी ब्रह्म है- उस ब्रह्म रूपी कर्म में स्थित रहने वाले के  द्वारा प्राप्त किए जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।  


आप का दिन शुभ हो ! 

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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