दोस्तों इस ख़ूबसूरत मौसम में आसमाँ पर छाई काली घटाओं को देख कर कुछ शे'र ज़हन में आए, उन्हीं को कागज़ पर उतार कर आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ । 

एक ग़ज़ल ..... 

आसमां पर घटा जो छाई है,
उसकी ज़ुल्फ़ों की रौशनाई है।

पहले वो खुल के बात करती थी, 
आज फिर क्यूँ वो हिचकिचाई है। 

मैं भी अब आशना नहीं उससे, 
अब वो मेरी नहीं पराई है। 

साथ रहना था उम्र भर जिसको, 
उसने बस्ती अलग बसाई है। 

दिल लगाया तो चोट खाओगे, 
बात ये अब समझ में आई है। 

जिसको देवी वफ़ा की समझा था,
उसकी नस-नस में बेवफ़ाई है।

इश्क़ ने चैन छीना पहले तो, 
और अब नींद भी उड़ाई है। 

ख़ुश तो हूँ आज उनसे मिल कर मैं, 
फ़िर मेरी आंख क्यूँ भर आई है।

- पुनीत कृष्णा माथुर 
  ग़ाज़ियाबाद 
Share To:

Post A Comment: