🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से।
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम् ।।
(अध्याय 2, श्लोक 66)
इस श्लोक का अर्थ है : न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और शान्तिरहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ?
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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