🙏राधे राधे🙏
आप सभी को प्रणाम मित्रों !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से।
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्॥
(अध्याय 4, श्लोक 21)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) आशारहित, जीते हुए अंतःकरण वाला और सभी संग्रहों का त्याग करने वाला मनुष्य केवल शरीर-निर्वाह संबंधी कर्म करता हुआ भी पाप को प्राप्त नहीं होता।
आप का दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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