🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम मित्रों !

मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे  अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से।

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः॥
(अध्याय 4, श्लोक 20)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) जो सभी कर्मों और उनके फल में आसक्ति का त्याग करके स्वयं में नित्य संतुष्ट है और संसार के आश्रय से रहित हो गया है, वह कर्म करता हुआ भी कुछ नहीं करता।

आप का दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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