🙏राधे राधे 🙏
प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से।
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥
(अध्याय 4, श्लोक 17)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्मों की गति गहन (छिपी हुई) है।
शुभ दिन !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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