🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम !

मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे  अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से।

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥
(अध्याय 4, श्लोक 14)

इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) मुझे कर्मों के फल की कामना नहीं है इसलिए कर्म मुझे लिप्त नहीं करते। इस प्रकार जो तत्त्व से मुझे जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता।  

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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