🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय 'ज्ञानकर्मसंन्यासयोग' से।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥
(अध्याय 4, श्लोक 13)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) को उनके गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है। उस सृष्टि-रचनादि कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी को तुम अकर्ता ही जानो।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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