🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से।
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।
(अध्याय 3, श्लोक 35)
इस श्लोक का अर्थ है : अच्छी तरह आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुणों की कमी वाला अपना धर्म श्रेष्ठ है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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