🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम !

मित्रों आज के दो श्लोक मैंने लिए  हैं श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से। 

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्य यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥
(अध्याय 3, श्लोक 14, 15)

इन श्लोकों का अर्थ है : सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है, वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। 

कर्मसमुदाय को तुम वेद से और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जानो। इसलिए सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है।  

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
Share To:

Post A Comment: