🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।
(अध्याय 3, श्लोक 9)
इस श्लोक का अर्थ है : यज्ञ (कर्तव्यपालन) के लिए किए जाने वाले कर्मों से अन्यत्र (अपने लिए किए जाने वाले) कर्मों में लगा हुआ यह मनुष्यसमुदाय कर्मों से बँधता है इसलिए हे कुन्तीनन्दन तू आसक्तिरहित होकर उस यज्ञ के लिए ही कर्तव्यकर्म कर।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
Post A Comment: