🙏राधे राधे 🙏 

आप सभी को प्रणाम ! 

मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से। 

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।
(अध्याय 2, श्लोक 70)

इस श्लोक का अर्थ है : जैसे सम्पूर्ण नदियों का जल चारों ओर से जल से परिपूर्ण समुद्र में आकर मिलता है पर समुद्र अपनी मर्यादा में अचल प्रतिष्ठित रहता है। ऐसे ही सम्पूर्ण भोगपदार्थ जिस संयमी मनुष्य में विकार उत्पन्न किए बिना ही उसको प्राप्त होते हैं वही मनुष्य परमशान्ति को प्राप्त होता है, भोगों की कामना वाला नहीं।

आपका दिन शुभ हो ! 

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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