नई दिल्ली : पुनीत कृष्णा। मित्रों न्यूज़ लाइव टुडे के साहित्य सरोवर में आज प्रस्तुत है कवियत्री डॉ. रंजना शर्मा (कोलकता) की रचना 'प्रेम में डूबी स्त्री'।

बेथुन कॉलेज, कोलकाता में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रंजना शर्मा की अब तक तीन पुस्तकें 'लोकसाहित्य चिंतन के विविध आयाम', "साहित्य और भाषा चिंतन' व 'नींद की नदी' (कविता संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके साथ ही उनके शोध आलेख और कविताएं विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। 

प्रेम में डूबी स्त्री
प्रेम में डूबी स्त्री
होती है दुनिया की सबसे बेहतरीन औ' लाजवाब कविता
जिसे न किसी शास्त्रगत नियम में बाँधकर
पढ़ा जा सकता है
और न ही उसे
कोशगत अर्थों से जाना जा सकता है।
वह होती है
कुछ अपने रौ में बहती हुई नदी के मानिंद
पानी सा गीला और माटी सी नरम।
प्रेम में डूबी हुई स्त्री
होती है
सद्धः अखुआएँ अंकुरों की तरह
बेहद नाजुक औ' मुलायम
पर खिलने को आतुर
जिसे सिरजने के लिए चाहिए होता है
एक गमला विश्वास
और रोज चुरू भर पानी प्यार का।

बारिश थमने के बाद
नीम की फुनगियों पर टँगी रहती हैं जो बूँदें
स्त्री जो डूबी होती है
प्रेम में पूरी तरह
वह भी चू जाने को रहती है बेताब बूँदों जैसी
जानकर भी पत्तियों से टपकी बूँदों का
नहीं होता कोई खास ठीकाना
तभी प्रेम में डूबी स्त्री
नहीं मिलती अपने किसी ठीकाने पर।

प्रेम में डूबी स्त्री को
बार-बार किया जाता है अपदस्थ
बार-बार कसा जाता है
इतिहास के आवर्त में
माँगा जाता है
उसके प्रेम का सर्वाधिक निकट ठीकाना
बार-बार छलनियों से छाना जाकर
रौंदा जाकर बार-बार नपुंसक स्वत्वों से
प्रेम में आकंठ डूबी स्त्री
देती है दस्तक लगातार
अपनों से अपने को बचाने के लिए।

वह स्त्री
जो करती है पान प्रेम का
यह जानकर भी
नहीं होता एक भी प्रेम पुख़्ता न ही विष से खाली
तब भी स्त्री नहीं रचती है
इतिहास युद्धों का
न ही बनाती है
ताज औ' मुमताज़ महल प्रेम में।

प्रेम में डूबी हुई स्त्री
डूब जाती है इक रोज
प्रेमहीन सूखी नदी में
और बिला जाती है अतल में सदा के लिए
देकर एक प्रेमगीत
प्रेमहीन संसार को...।
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