🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से।
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥
(अध्याय 3, श्लोक 25)
इस श्लोक का अर्थ है : हे भरतवंशी ! जिस प्रकार अज्ञानी मनुष्य फ़ल की इच्छा से कार्य (सकाम-कर्म) करते हैं, उसी प्रकार विद्वान मनुष्य को फ़ल की इच्छा के बिना संसार के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए ।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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