नई दिल्ली : पुनीत कृष्णा। साधना श्रीवास्तव ने अपने लिए नहीं बल्कि समाज की महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। छोटी उम्र में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद पूरा परिवार मुफलिसी में पला। कभी एक वक्त की रोटी मिल जाती थी तो दूसरे वक्त की रोटी के बारे में पता नहीं रहता था। इसी मजबूरी के बीच पलकर बड़ी हुई साधना ने अपने जीवन में समाज की जो सेवा की, वह लोगों के लिए प्रेरणासोत बन गई है।


बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया। शोषण का शिकार निसहाय बच्चों और महिलाओं की मुक्ति और फिर प्रगति के लिए जो कार्य किये और कार्यक्रम बनाए, वे आज समाज के लिए आदर्श बन गए हैं। 

जीवन में आई हर चुनौती को स्वीकार करने वाली साधना श्रीवास्तव ने कभी भी विपरीत परिस्थितियों में खुद को निराश होने नहीं दिया। उलटे, मुश्किल हालातों में समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करते हुए और भी ताकतवर हुई।

आईएएस अधिकारी रमारमण जी के साथ साधना श्रीवास्तव

साधना बताती हैं कि पढने की उम्र में ही इतना कमाने लगीं कि अपनी सारी ज़रूरतों के लिए उन्हें अपने मां और भाइयों पर उनको निर्भर नहीं होना पड़ा। स्वयं के जुटाए रूपये की मदद से साधना ने उच्च शिक्षा भी हासिल की। उन्होंने बचपन में ही बहुत कुछ सीख लिया था। 

गरीबी को उन्होंने बहुत करीब से देखा। ये भी जान लिया कि गरीब परिवारों में महिलाएं और बच्चे किन-किन समस्याओं से दो-चार होते हैं। साधना बहुत ही छोटी उम्र में ही ये जान गयी थी कि बच्चे किन हालत में मजदूर बनते हैं और मजदूर बनने के बाद किस तरह से उनका बचपन उनसे छिन जाता है।


अपने ही दम पर उन्होंने मानसी के नाम से स्वयंसेवी संस्था का गठन किया। साधना बिना सरकारी सहायता के अब तक करीब 5100 गरीब कन्याओं की शादी करवा चुकी हैं, करीब 110 नाबालिग शादियां रुकवाई, 6 जोड़ों की शादियां की, चारों धर्म की एक मंच से शादियां कराई, 2 बेटियों की किडनी का ऑपरेशन कराया, 3 माँओं की गोद भी भरी। इसके अलावा कांउसलिंग के माध्यम से वे कई घरों को उजडऩे से भी बचा चुकी हैं। 100 से अधिक गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा रही हैं।

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