पैर छूना या प्रणाम करना केवल एक परंपरा या शिष्टाचार ही नहीं, यह एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है।

पैर छूने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि अनजाने ही कई बातें हमारे अंदर उतर जाती है। पैर छूने का सबसे बड़ा फायदा शारीरिक कसरत होती है, तीन तरह से पैर छुए जाते हैं। पहले झुककर पैर छूना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग प्रणाम।

लेखक डी. एल. बर्मन (शहडोल)

झुककर पैर छूने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि में हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है, जिससे उनमें होने वाले स्ट्रेस से राहत मिलती है, तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है।

प्रणाम करने का तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। किसी के पैर छूना यानी उसके प्रति समर्पण भाव जगाना, जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म होता है। इसलिए बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया। और आज हम पाशचात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर इस परंपरा से विमुख हो रहे है। 

यदि कोई सबके सामने ऐसा करता है तो उसे पिछड़ा तथा गंवार माना जाता है। अगर इसको ही आगे बढना कहते हैं तो धिक्कार है ऐसे विकास पर। माता - पिता को चाहिए कि बचपन से ही अपने बच्चों को पैर छूने और प्रणाम करने की आदत डालें, सिर्फ शिष्टाचार के लिए नहीं बल्कि उनके शारीरिक विकास के लिए भी।

प्रस्तुति : डी. एल. बर्मन (शहडोल)
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