नई दिल्ली : पुनीत कृष्णा। मित्रों न्यूज़ लाइव टुडे के साहित्य सरोवर में आज प्रस्तुत है युवा कवियत्री अंजना अग्रवाल (झाँँसी) की रचना 'वह कुछ अलग सी है'।

अंजना जी की रचनाएं यथार्थ के करीब होने के कारण पाठकों के दिल में सहज ही उतर जाती हैं। आइए 'वह कुछ अलग सी है' में पढ़ते हैं एक गृहणी के मन की बात ....

वह कुछ अलग सी है 

वह कुछ अलग सी है ,
जब तुम,घर पर, बच्चों पर,
उस पर अपना अधिकार जताते हो, 
वह खुशी से फूल जाती है। 
मगर जब कमाई पर, चीजों पर, 
खर्च पर अपना अहसान जताते हो, 
वह कुछ घायल सी हो जाती है।
जिद भी नहीं करती तुमसे, 
न अपना हक जताती है, 
हाँ, वह कुछ अलग सी है। 

जब वह तुम्हारें दिये पैसों में,
खर्च पूरा न पड़ने पर, 
अपनी इच्छायें मार जाती है ।
जरूरत पड़ने पर अपना 
बचत कोष खाली कर जाती है। 
जब तुम माँगते हो 
फिर भी उससे हिसाब 
आत्मसम्मान की दहलीज़ पर 
कंगाल सी हो जाती है ।
हाँ, वह कुछ अलग सी है। 

जब नहीं दिखाई देते उसके 
अनगिनत समझौतें, 
दिखाई देते है छोटी-मोटी गल्तियाँ,
शायद नहीं है वह तुम्हारी 
माँ, दादी - चाची की तरह 
सुघड़ गृहिणी ,नहीं आता उसे 
रीति-नीति पर सुगमता से चलना, 
पर कोशिशें तो करती है न,
फिर भी कमियाँ निकाल 
जग जाहिर कर देते हो जब,
टूट-टूट सी जाती है। 
हाँ, वह कुछ अलग सी है। 

सफल -विफल जीवन का अंतर 
शायद जिसे मालूम नहीं, 
अपने लिए जो खड़ी भी न हुई, 
बच्चों के लिए लड़ जाती है। 
ममता की रसधार में घुलकर, 
कभी चाशनी तो कभी 
नीम सी हो जाती है ।
हाँ, वह कुछ अलग सी है।
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