राधे राधे ! 

मित्रों आज का श्लोक मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयमयोग' से लिया है । 

उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
( छठा अध्याय, श्लोक 5)

इस श्लोक का अर्थ है : मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिए क्योंकि आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है ।

सुप्रभात !
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