🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' से।
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान् युक्तः समाचरन्।।
(अध्याय 3, श्लोक 26)
इस श्लोक का अर्थ है : हे भरतवंशोद्भव अर्जुन कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं आसक्तिरहित विद्वान् भी लोकसंग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे। तत्त्वज्ञ महापुरुष कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानी मनुष्यों की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न न करें बल्कि स्वयं समस्त कर्मों को अच्छी तरह से करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए अर्थात ज्ञानी पुरुष कर्मों में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न न करे स्वयं (भक्ति से) युक्त होकर कर्मों का सम्यक् आचरण कर उनसे भी वैसा ही करवाए।
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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