🙏राधे राधे 🙏
आप सभी को प्रणाम !
मित्रों कल के श्लोक (अध्याय 3, श्लोक 22) में भगवान श्री कृष्ण कह रहे थे कि मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है फिर भी मैं कर्तव्यकर्म में ही लगा रहता हूँ। आज उसके अगले श्लोक में देखिए वो क्या कह रहे हैं।
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।
(अध्याय 3, श्लोक 23)
इस श्लोक का अर्थ है : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि) हे पार्थ अगर मैं किसी समय सावधान होकर कर्तव्यकर्म न करूँ (तो बड़ी हानि हो जाय क्योंकि) मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्टभ्रष्ट हो जाएं और मैं संकरता को करने वाला तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद
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