🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम !

मित्रों कल के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कह रहे थे कि साधारण मनुष्य श्रेष्ठ मनुष्य के मार्ग का अनुसरण करते हैं। आज उसके अगले श्लोक में देखिए वो क्या कह रहे हैं। 

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि
(अध्याय 3, श्लोक 22)

इस श्लोक का अर्थ है : हे पार्थ मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है फिर भी मैं कर्तव्यकर्म में ही लगा रहता हूँ।

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा
ग़ाज़ियाबाद 
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