🙏राधे राधे 🙏

आप सभी को प्रणाम ! 

मित्रों आज का श्लोक मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से लिया है । इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण बता रहे हैं कि हमें अपनी बुद्धि, योग और सही गलत को समझ कर गलत कामों से दूर रहना चाहिए। 

दुरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धञ्जय।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ||
(अध्याय 2, श्लोक 49)

इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं) हे पार्थ ! अपनी बुद्धि, योग और चैतन्य द्वारा निंदनीय कर्मों से दूर रहो और समभाव से भगवान की शरण को प्राप्त हो जाओ| जो व्यक्ति अपने सकर्मों के फल भोगने के अभिलाषी होते हैं वह कृपण (लालची) हैं |

आपका दिन शुभ हो !

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
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