🙏राधे राधे 🙏 

मित्रों आप सभी को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं ! आज का श्लोक भी मैंने योग की एक अवस्था 'समत्वयोग' पर लिया है। 

श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय 'सांख्ययोग' से लिए गए इस  श्लोक में भगवान श्री कृष्ण बता रहे हैं कि हमें पाप-पुण्य के  विषय में न सोचते हुए पूरी ईमानदारी से कर्म करना चाहिए। 

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । 
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥
(अध्याय 2, श्लोक 50)

इस श्लोक का अर्थ है : समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात् उनसे मुक्त हो जाता है । इसलिए तू समत्वरूप योग में ही स्थिर हो; यह समत्वयोग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबंधन से छूटने का उपाय है । 

आपका दिन शुभ हो ! 

पुनीत कृष्णा 
ग़ाज़ियाबाद
Share To:

Post A Comment: