नई दिल्ली : आज के माहौल में तिरंगे की वेदना को व्यक्त करता सुप्रसिद्ध कवि रवि सरोहा का गीत
प्रस्तुति : अनीता गुलेरिया, वरिष्ठ संवाददाता, न्यूज़ लाईव टुडे
हां मैं तिरंगा हूं
देश खातिर मर गए,
उन शहीदों के लहू से मैं तो रंगा हूं।
हां मैं तिरंगा हूं॥
मैंने देखा है यहां पर सूनी मांगों का रुदन,
छोटे बच्चों के सिरों से उठता हुआ गगन,
अस्थियां कितनी बही हैं मेरे इस पावन नीर में,
मैं ही यमुना की लहर हूं, मैं ही गंगा हूं ।
हां मैं तिरंगा हूं ॥
राजनीति ने है बदले कैसे - कैसे रंग हैं,
लोग डरते जा रहे हैं जाने कैसी जंग है,
मजहबी होने लगे हैं भूलकर सद्भावना,
अपनों के हाथों जला मैं वो पतंगा हूं ।
हां मैं तिरंगा हूं॥
है भरे भंडार जिनके लोग ऐसे चंद हैं,
लाखों टन अनाज सड़ता बोरियों में बंद है,
तन पर कपड़े ना कहीं तो भूख से मरता कहीं,
दर-ब-दर मैं ही भटकता,मैं ही नंगा हूं।
हां मैं तिरंगा हूं॥
साजिशें नित हो रही हैं, लोग मरते जा रहे,
हर तरफ आतंक फैला,लोग डरते जा रहे,
जल ना जाए देश पूरा,क्यू जले कश्मीर है,
मैं ही हिंदू, मैं मुसलमाँ, फिर क्यूँ पंगा हूं।
हां मैं तिरंगा हूं ॥
नफरतों का दंश फैला, कौन अब बच पाएगा,
जिस तरह से मैं जला हूं,तु भी सुन जल जाएगा,
अपनों से पीड़ा मिली तो मन यह घायल हो गया,
कैसे कह दूं ठीक हूं मैं, हां मैं चंगा हूं।
हां मैं तिरंगा हूं॥
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