नई दिल्ली : पुनीत माथुर। न्यूज़ लाइव टुडे के 'साहित्य सरोवर' में आज फिर एक बार प्रस्तुत है युवा कवियत्री ममता चौधरी की रचना 'वह'।
उसकी आँखों मे डूबकर
मिल सकता था
दुनिया के तमाम प्रेमियों का पता
हालांकि उसने प्रेम नहीं किया था कभी
तब भी वह भर देना चाहती थी
संसार को प्रेम से
उसके निचले होंठ के बायीं और के तिल पर
कैद थे जहां के सब तिलिस्म
उसके झक्क सफेद रंग को छूकर
महसूस किया जा सकता था
तमाम बर्फीले पहाड़ों का रास्ता
वह हंसती या शर्माती तो
सफेद ही फैल जाता आस-पास
जरा धूप में मगर खिलते थे
पलाश उसके गालों में
उसके सुनहरी बालों पर
और चढ़ जाती सोने की रंगत
उसकी पेशानी की सिलवटों से
उठती थी समुद्र में लहरें
उसकी हथेलियों की रेखाओं से
गुजरते थे तमाम नदियों के रास्ते
उसकी पलकों की नमी से
भीग जाता था सावन
उसकी उदासियों से लिपट
घने हो जाते थे बादल
उसकी पायलों की रुनझुन से
हवाओं में घुलती थी मिठास
वह जब मुस्कुराती तो
खिलता था पीला बसंत..
मौसम नहीं बदलता है अब रंग
पतझड़ को आंखों में भर
जाने कहाँ ठहरी है वो आजकल..
उसकी आँखों मे डूबकर
मिल सकता था
दुनिया के तमाम प्रेमियों का पता
हालांकि उसने प्रेम नहीं किया था कभी
तब भी वह भर देना चाहती थी
संसार को प्रेम से
उसके निचले होंठ के बायीं और के तिल पर
कैद थे जहां के सब तिलिस्म
उसके झक्क सफेद रंग को छूकर
महसूस किया जा सकता था
तमाम बर्फीले पहाड़ों का रास्ता
वह हंसती या शर्माती तो
सफेद ही फैल जाता आस-पास
जरा धूप में मगर खिलते थे
पलाश उसके गालों में
उसके सुनहरी बालों पर
और चढ़ जाती सोने की रंगत
उसकी पेशानी की सिलवटों से
उठती थी समुद्र में लहरें
उसकी हथेलियों की रेखाओं से
गुजरते थे तमाम नदियों के रास्ते
उसकी पलकों की नमी से
भीग जाता था सावन
उसकी उदासियों से लिपट
घने हो जाते थे बादल
उसकी पायलों की रुनझुन से
हवाओं में घुलती थी मिठास
वह जब मुस्कुराती तो
खिलता था पीला बसंत..
मौसम नहीं बदलता है अब रंग
पतझड़ को आंखों में भर
जाने कहाँ ठहरी है वो आजकल..
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