नई दिल्ली : पुनीत माथुर। मित्रों पिछले सप्ताह न्यूज़ लाइव टुडे के ' साहित्य सरोवर' में हमने शहडोल (मध्यप्रदेश) के डी.एल. बरमन जी की एक ग़ज़ल को प्रकाशित किया था जिसे आप सब ने बहुत पसंद किया।
आज आपकी फर्माइश पर प्रस्तुत है उन्हीं की ही एक नई कविता। आशा है कि यह भी आपको बहुत पसंद आएगी।
एक नई कविता...
चीज़ों में कुछ चीज़ें
बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हे कभी ना देख पाओगे
इक्कीसवीं सदी में
ढूँढते रह जाओगे
बच्चों में बचपन
जवानी में यौवन
शीशों में दर्पण
जीवन में सावन
गाँव में अखाड़ा
शहर में सिंघाड़ा
टेबल की जगह पहाड़ा
और पायजामे में नाड़ा
ढूँढते रह जाओगे
चूड़ी भरी कलाई
शादी में शहनाई
आँखों में पानी
दादी की कहानी
प्यार के दो पल
नल नल में जल
तराजू में बट्टा
और लड़कियों का दुपट्टा
ढूँढते रह जाओगे
गाता हुआ गाँव
बरगद की छाँव
किसान का हल
मेहनत का फल
चहकता हुआ पनघट
लम्बा लम्बा घूँघट
लज्जा से थरथराते होंठ
और पहलवान का लंगोट
ढूँढते रह जाओगे
आपस में प्यार
भरा पूरा परिवार
नेता ईमानदार
दो रुपये उधार
सड़क किनारे प्याऊ
संबेधन में चाचा ताऊ
परोपकारी बंदे
और अरथी को कंधे
ढूँढते रह जाओगे ..।।।।
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