ग़ाज़ियाबाद : पुनीत माथुर। इंदिरापुरम के अवंतीबाई पार्क स्थित ॐ श्री साईं शिव शक्ति मंदिर में बृहस्पतिवार बसंत पंचमी से 14वें श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का शुभारंभ हुआ।

प्रातः दस बजे बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयोजन स्थल पर एकत्रित हुए। श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिन मंदिर परिसर से कलश के साथ महिला पुरुषों ने बाजे-गाजे के साथ कलश यात्रा निकाली। बैण्ड बाजे के साथ शुरु हुई कलश यात्रा में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे, पुरुष व महिलाओं ने हिस्सा लिया।


कलश यात्रा में सबसे आगे रथ पर व्यास आचार्य परमानंद देवली जी, ट्रस्ट परिवार के सभी सदस्य और समाज के बंधू चल रहे थे।

कलश यात्रा में पीले वस्त्र धारण की हुई कन्याएं व महिलाएं सिर पर कलश धारण किए हुए मंगलगीत गाते हुए चल रही थीं। कलश यात्रा इंदिरापुरम के  विभिन्न मार्गो से निकाली गयी। शोभा यात्रा का जगह-जगह लोगो ने पूरी आस्था और आचार्य जी के जयकारे के साथ पुष्प वर्षा कर स्वागत किया।

कलश यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के जयकारे से वातावरण गुंजायमान हो गया। राधे-राधे के उद्घोष से माहौल भक्ति के रस में डूब गया।


इसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच पुरोहितों द्वारा कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की। आचार्य ने विधिविधान पूर्वक पूजन संपन्न कराया। आचार्य परमानंद देवली जी के व्यास पीठ पर आसन होने के पश्चात् माल्यापर्ण कर व उपरणा ओढ़ाकर स्वागत किया गया ।

पहले दिन माहात्म्य पर बोलते हुए आचार्य परमानंद देवली जी ने कहा कि बिनु परतीती होई नहीं प्रीति अर्थात माहात्म्य ज्ञान के बिना प्रेम चिरंजीव नहीं होता, अस्थायी हो जाता है। धुंधकारी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मसात कर लेें तो जीवन से सारी उलझने समाप्त हो जाएगी।

द्रौपदी, कुन्ती महाभागवत नारी है। कुन्ती स्तुति को विस्तारपूर्वक समझाते हुए परीक्षित जन्म एंव शुकदेव आगमन की कथा सुनाई। बीच-बीच में मधुर भक्ति संगीत ने सबको कृष्ण रंग में सराबोर कर दिया।

पश्चात गौकर्ण की कथा सुनाई गई।शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भगवान की लीला अपरंपार है। श्रीमदभागवत कथा के महत्व को समझाते हुए कहा कि भागवत कथा में जीवन का सार तत्व मौजूद है आवश्यकता है निर्मल मन ओर स्थिर चित्त के साथ कथा श्रवण करने की।

उन्होंने अच्छे ओर बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया और  धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वही धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल-कपट से पुत्र प्राप्ति और उसके बुरे परिणाम को समझाया।

भजन, गीत व संगीत पर श्रद्धालु देर तक झूमते रहे। अंत में आरती व प्रसाद वितरण के साथ प्रथम दिन की  श्रीमद भागवत कथा को विराम दिया गया।

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