नई दिल्ली : पुनीत माथुर। भारतवर्ष के महान योद्धा महाराणा प्रताप को भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप अपने साथ दो तलवारें रखते थे जिससे कि यदि युद्ध में शत्रु के पास तलवार ना हो तो उसको एक तलवार दे सकें ताकि मुकाबला बराबरी का हो।
अकबर ने महाराणा प्रताप को प्रस्ताव दिया था कि यदि वे उसके सामने झुक जाते हैं तो आधा भारत महाराणा प्रताप का हो जाएगा परंतु उन्होंने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
झुंझनूं (राजस्थान) की कवियत्री सुमन राठौड की यह रचना 'स्वाभिमानी प्रताप' इस वीर को श्रद्धांजलि है।
स्वाभिमानी प्रताप
वो सत्यपथी था,
वो तेजपूंज था,
वो स्वाभिमान का अटल रक्षक था,
वो आन- बान पर मिटने वाला , देश धर्म की वेदी पर
सर्वस्व न्यौछावर करने वाला ,
वो राणा सांगा का वंशज ,
वो महाराणा प्रताप था।
अटल सत्य का रक्षक था वो,
शौर्यपूंज ,भू की थाती था वो,
आंधी-तुंफा जिसे रोक न पाए,
वो कष्टों से कभी डिगा नहीं।
संधि उसे मंजूर न थी,
प्रलोभन से वो झूका नहीं,
स्वाभिमान की खातिर महलों से नाता तोड लिया,
जंगलों से जिसने नाता जोड लिया।
शौर्य का वह अंगार था,
वो हल्दीघाटी के रण का जुझार था,
स्वप्न में भी अकबर जिससे भय खाता था।
चेतक जिसका साथी था,
राणा की पुतली फिरती नहीं,
तब तक चेतक मुड जाता था,
वो स्वामिभक्त था,
वो बलशाली था,
प्रताप को ले उडता था जहां ,
वार न कोई खाली जाता था।
प्रताप के संग भील लडाके थे,
भामाशाहों ने संचित धन खोला।
हर मन पर प्रताप का शासन था,
केसरिया पगडी जिसने कभी झूकने न दी,
स्वाभिमान की खातिर जिसने घास की रोटी खाना मंजूर किया।
स्वाभिमान कभी न छूटे,
भले जाए प्राण,
इतिहास के पन्नों की वो अमिट
शौर्य गाथाएं आज भी गाता है जन-जन।
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